जब से मैंने होश संभाला है.
तब से दुख-दर्दों को पला है.
खुशियां बडे बाप की होती हैं.
महलों में मखमल पर सोती हैं.
सारां ही संताप यहां रहता,
ये घर झोंपड-पट्टी वाला है.
बाल उमरिया पडी बडकपन में.
इसे प्रोढता मिली लडकपन में.
जीवन जीने का सारा बोझा,
बचपन के कंधों पर डाला है.
यही सोचता रहा खिले गुलशन.
साथ हमेशा लगी रही उलझन.
बुन-बुन के में फंसता चला गया,
ये जीवन मकडी का जाला है.
जितने रिश्ते-नाते दुनिया में.
सब को नाप लिया है गुनिया में.
नहीं किसी का हुआ यहां कोई,
भैया सबका ऊपरवाला है.
kya baat hai bhai !
ReplyDeletebahut achha
Bohot sundar!
ReplyDeleteSneh aur shubhkamnayen!
"shabd pushtee karan," gar hai, please hata den!
id do not, u will leg behind. narayan narayan
ReplyDeleteBahut khub.Badhai.
ReplyDeleteगंभीरतापूर्वक विचार किया जाये तो प्रतीत होगा कि जीवन और जगत् में विद्यमान समस्त दु:खों के कारण तीन हैं - 1. अज्ञान 2 अशक्ति 3. अभाव। जो इन तीन कारणों को जिस सीमा तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा, वह उतना ही सुखी बन सकेगा।
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