Monday, June 8, 2009

गीत


जब से मैंने होश संभाला है.
तब से दुख-दर्दों को पला है.

खुशियां बडे बाप की होती हैं.
महलों में मखमल पर सोती हैं.
सारां ही संताप यहां रहता,
ये घर झोंपड-पट्टी वाला है.

बाल उमरिया पडी बडकपन में.
इसे प्रोढता मिली लडकपन में.
जीवन जीने का सारा बोझा,
बचपन के कंधों पर डाला है.

यही सोचता रहा खिले गुलशन.
साथ हमेशा लगी रही उलझन.
बुन-बुन के में फंसता चला गया,
ये जीवन मकडी का जाला है.

जितने रिश्ते-नाते दुनिया में.
सब को नाप लिया है गुनिया में.
नहीं किसी का हुआ यहां कोई,
भैया सबका ऊपरवाला है.



Sunday, May 3, 2009

ज़िन्दगी



ज़िन्दगी
तलाश है
किसी गुमशुदा की
सम्बन्धों की
पूछताछ वाली खिड़की है
यह प्रेम की
वह प्याऊ है
जिसकी चाह में
आदमी
खोया-पाया केन्द्र
बना बैठा है.